छोटी वस्तु में सिद्धि-ऋद्धि,कुछ वृक्षों के तो पत्ते तक धन प्राप्ति कराने में सहयोग करते हैं। =========================================================
प्रकृति अपने में असंख्य निधियों को समेटे हुए है, जिसको इनका ज्ञान है, वह लाभ उठाता है। ऎसी बहुत सी वस्तुएं हैं जो सुख-समृद्धि के प्रभावों से ओत-प्रोत हैं। वनस्पतियों से लेकर प्रस्तरखण्ड और धातुएँ इनकी प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। ईश्वर ने प्रकृति को अपनी माया कहा है। एक पुरूष (ईश्वर) की माया उसकी स्त्री होती है। पुरूष प्रदत्त या अर्जित सभी सम्पत्ति की एकमात्र अधिकारिणी उसकी पत्नी होती है। ईश्वर ने भी अपने समस्त वैभव प्रदायक, समृद्धिदायक प्रभावों को प्रकृति में पृथक-पृथक रूप में व्यवस्थित किया है। पंच तत्व आदि तो प्रधान हैं ही कुछ वृक्षों के तो पत्ते तक धन प्राप्ति कराने में सहयोग करते हैं। ऎसी वस्तुओं की गणना यद्यपि संभव नहीं क्योंकि "कण-कण में भगवान हैं, के अनुसार प्रकृति में उपस्थित हर छोटी से छोटी वस्तु में सिद्धि-ऋद्धि व्याप्त हैं।" उनमें से कुछ सुगम उपलब्ध वस्तुओं का और उनको प्रयोग में लेने का उल्लेख करेंगे। इस विषय वस्तु का प्रमाण प्रमुख तंत्र-शास्त्रों व कुछ प्रसिद्ध पुराणों में इनकी उपयोगिता का वर्णन है-
तुलसी - तुलसी साक्षात् लक्ष्मी स्वरूपा हैं और भारत के हर भाग में सहज उपलब्ध हैं। जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं, वह घर सूना समझा जाता है। तुलसी का स्पर्श कर घर में प्रवेश करने वाली वायु साक्षात् अमृत होती है। दैहिक स्वास्थ्य को सिद्ध करती है। प्रतिदिन तुलसी को जल चढ़ाने से न केवल स्वास्थ्य अच्छा रहता है अपितु इससे भगवान केशव प्रसन्न होते हैं और घर में धन-धान्य की वृद्धि करते हैं।
हरसिंगार का बांदा - हरसिंगार नामक एक पौधा है। किसी पौधे पर पुष्प लगने के बाद, फल लगने से पूर्व पुष्प जिस अवस्था में होता है, वही बांदा कहलाता है। बांदा में पुष्प व फल की मिश्रित गंध होती है। हरसिंगार का बांदा आर्थिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है तथा भवन के दोषों का निवारण भी करता है। शनिवार और मंगलवार के अतिरिक्त अन्य किसी वार को जबकि चंद्रमा हस्त नक्षत्र पर हों तब हरसिंगार का बाँदा घर में ले आएं और महालक्ष्मी के मंत्र से इसका पूजन करने के उपरांत लाल कप़डे में लपेट कर तिजोरी में रखने से धन और समृद्धि की बढ़ोत्तरी होती है, धन लाभ के नवीन अवसर प्राप्त होते हैं।
रूद्राक्ष - प्राकृतिक वनस्पतियों में रूद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत के अधिकांश भागों में रूद्राक्ष पाया जाता है तथापि नेपाल, मलाया, इण्डोनेशिया, बर्मा आदि में यह प्रचुर मात्रा उपलब्ध होता है। भगवान शंकर के नेत्रों से रूद्राक्ष की उत्पत्ति मानी जाती है। वृक्ष में रूद्राक्ष फल के रूप में उत्पन्न होता है। आकार भेद से रूद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। रूद्राक्ष दाने पर उभरी हुई धारियों के आधार पर रूद्राक्ष के मुख निर्धारित किये जाते हैं। एकमुखी दुर्लभ हैं और दो मुखी से 21 मुखी तक रूद्राक्ष होते हैं।
जब कभी रविवार-गुरूवार या सोमवार को पुष्य नक्षत्र पर चंद्रमा हों तो ऎसे सिद्ध योग में रूद्राक्ष का पूजन कर, रूद्राक्ष को शिव स्वरूप मानकर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। रूद्राक्ष को माला या लॉकेट के रूप में धारण किया जाता है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने पर भूत-प्रेतजनित बाधाओं, अदृश्य आत्माओं तथा अभिचार प्रयोग जनित बाधाओं का समाधान होने लगता है।
रूद्राक्ष दाने को गंगाजल में घिसकर प्रतिदिन माथे पर टीका लगाने से मान-सम्मान तथा यश और प्रतिष्ठा बढ़ती है। विद्यार्थी वर्ग इस प्रकार टीका लगाएं तो उनकी बुद्धि एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।
गोरोचन - गोरोचन अति प्रसिद्ध वस्तु है। पूजा कर्म में अष्टगंध बनाने में तथा आयुर्वेद में कतिपय औषधियों के निर्माण में गोरोचन को प्रयोग में लिया जाता है। गोरोचन गाय के सिर में से प्राप्त किया जाता है तथा बाजार में पंसारी की दुकान पर यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
प्रयोग
"रवि-पुष्य" या "गुरू-पुष्य" योग में गोरोचन के एक टुक़डे को गंगाजल व पंचामृत से शुद्ध करके, धूप-दीप आदि से शोधित कर, अपने इष्टदेव के मंत्र से इसे अभिमंत्रित कर लें और चाँदी की ताबीजनुमा डिब्बी में रखकर, गले में बाँध लेने या पूजा में रखने से अशांति दूर होती है और जीवन मे सुख शांति आती है।
गोरोचन के टुक़डे को उपरोक्त प्रकार पूजन करके चाँदी की डिब्बी में रखकर तिजोरी में रखने से व्यापार की वृद्धि होती है। धन का लाभ होता है।
एकाक्षी नारियल
नारियल को श्रीफल, खोपरा, गोला, कोकोनट आदि नामों से जाना जाता है। नारियल रेशेनुमा ज़डों से आवृत्त होता है। इन ज़डों को हटा देने पर अधिकांश नारियलों पर तीन काले रंग की बिन्दु जैसी आकृति दिखाई देती है, इनमें से दो नेत्रों तथा एक मुख का परिचायक होती है। किसी-किसी नारियल में एक नेत्र और एक मुख के रूप में मात्र दो ही निशान होते हैं, इसे "एकाक्षी नारियल" कहते हैं। इसे घर में रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। यद्यपि इसकी उपलब्धता दुर्लभ होती है लेकिन प्रयास करने पर यह प्राप्त हो जाता है। एकाक्षी नारियल को लाल कप़डे में लपेटकर, सिंदूर और कुंकुम आदि से पूजा करनी चाहिये।
जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती है, वहाँ लक्ष्मी जी की कृपा होती है, अन्न व धन की कभी कमी नहीं आती। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर पूजा की जाये तो व्यवसाय की वृद्धि होती है।
बरगद - बरगद को "वट वृक्ष" या ब़ड के वृक्ष के नाम से जाना जाता है। यह सर्व सुलभ है। महिलाएं "वट-सावित्री" व्रत में इस वृक्ष की पूजा करती हैं। इसमें तने के चारों ओर जटायें लटकती रहती हैं।
प्रयोग रविवार को जब चंद्रमा पुष्य नक्षत्र पर हों तब बरगद वृक्ष की जटा ले आएं तथा इसे सुखाकर अगले रविवार को जलाकर राख को कप़डछन करके रख लें। इस चूर्ण से दाँतों का मंजन करने से दाँतों के रोग दूर हो जाते हैं।
किसी पुराने बरगद वृक्ष के नीचे यदि कहीं स्व-उत्पन्न कोई छोटा बरगद का पौधा मिल जाये तो सौभाग्य का सूचक होता है। पुराने वृक्ष के नीचे इसकी सुरक्षा का पूर्ण बंदोबस्त कर देना चाहिये, जिससे कोई पशु-पक्षी या मनुष्य इसे क्षति नहीं पहुँचाये। जब कभी "रवि-पुष्य" योग पडे़ तब इस पौधे को ज़ड सहित उख़ाड कर लाएं और किसी सुरक्षित स्थान बाग या बगीचे में लगा दें तथा इसका पालन करते रहें। जैसे-जैसे यह पे़ड ब़डा होता जाता है, वैसे ही पे़ड लगाने वाले का आर्थिक ऎश्वर्य भी बढ़ता जाता है।
गोमती चक्र - चक्राकार आकृति (पत्थर के टुक़डे) को ही गोमती चक्र कहते हैं चूंकि यह गोमती नदी से ही प्राप्त होता है और एक विशेष प्रकार के पत्थर पर निर्मित होता है अत: इसे "गोमती चक्र" कहते हैं।
ग्यारह गोमती चक्रों को लाल कप़डे के आसन पर पूजा के स्थान पर रखने एवं प्रतिदिन उनकी केसर-चंदन से पूजा करते रहने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग "रवि-पुष्य", "गुरू-पुष्य" या दीपावली की रात्रि से प्रारंभ किये जा सकते हैं। पूजा में "ऊँ श्रीं श्रियै नम:" मंत्र प्रयोग में लें। इन वस्तुओं की प्राप्ति सुलभ हो तो ये प्रयोग दीपावली की रात्रि में भी किये जा सकते हैं
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